एक तुमको जो चुरा लूँ, तो ज़माना ग़रीब हो जाए,
हर गली की रौशनी कम, हर नज़ारा अजीब हो जाए।
तेरी आँखों की जो ताबानी, मैं अपनी रातों में रख लूँ,
तो चाँद भी बदनसीब हो जाए, और तारों का नसीब खो जाए।
तेरी मुस्कान का जो कर्ज़ है, वो मैं सांसों से चुकाता हूँ,
हर पल तुझमें सिमटता हूँ, हर पल तुझमें मिट जाता हूँ।
तू कोई ख़्वाब नहीं, तू मेरा मुकम्मल नसीब है,
तू मिले तो लगे जैसे रब से सीधा कोई तहरीर है।
तेरे गेसुओं की जो छाँव है, उसमें शामें ठहर जाती हैं,
तेरी ख़ुशबू में रूह तक भी सजदे को उतर जाती है।
तू मिले तो लगे जैसे काशी की शांति हो कोई,
या राधा की मुस्कान में कृष्ण की बांहें हों कोई।
मैं तुझसे मोहब्बत नहीं करता — मैं तुझमें फ़ना हो गया हूँ,
तेरे नाम की तिलावत में खुदा से जुदा हो गया हूँ।
तू रहे या न रहे — ये दिल कभी शिकायत नहीं करेगा,
मगर तुझसे दूर हर पल — इबादत में ग़लतियाँ करेगा।
और हाँ, अगर इक रोज़ ये सांसें मुझसे रुख़्सत हो जाएं,
तो तेरा नाम हो लबों पे — और कफ़न भी ग़ज़ल हो जाए।
क्योंकि तुझसे बढ़कर कुछ माँगा नहीं इस ज़िंदगी से,
एक तुझे चुरा लूं अगर — तो बाक़ी ज़माना ग़रीब हो जाए।